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भारत की राजधानी दिल्ली एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह कोई राजनीतिक बयानबाज़ी, विवाद या नई नीति नहीं, बल्कि एक ऐसी मांग है जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है—
क्या दिल्ली का नाम बदलकर ‘इंद्रप्रस्थ’ किया जाना चाहिए?
यह सवाल अचानक नहीं उठा। पिछले कुछ महीनों से कई संगठनों, इतिहास से जुड़ी संस्थाओं और अब एक सांसद तक ने इस पर जोर देना शुरू कर दिया है। और इसी के बाद चर्चा पूरे देश में फैल गई।
नाम बदलने की शुरुआत कहाँ से हुई?
बीजेपी के सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर आधिकारिक रूप से दिल्ली का नाम “इंद्रप्रस्थ” रखने का सुझाव दिया।
उन्होंने तर्क दिया कि दिल्ली का असली और ऐतिहासिक नाम यही था और यह बदलाव शहर की सांस्कृतिक पहचान को दोबारा चमका सकता है।
सिर्फ सांसद ही नहीं –
VHP, कई ट्रेडर्स ग्रुप, और कुछ हिंदू सांस्कृतिक संगठन भी लंबे समय से यही मांग कर रहे हैं कि दिल्ली को उसका “प्राचीन नाम” वापस मिलना चाहिए।
नाम बदलने के पक्ष में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
सांसद प्रवीण खंडेलवाल और समर्थक कहते हैं:
- दिल्ली का इतिहास इंद्रप्रस्थ से शुरू होता है, इसलिए यह नाम अधिक ऐतिहासिक और भारतीय है।
- इससे भारत की प्राचीन सभ्यता और विरासत को दुनिया के सामने सही पहचान मिलेगी।
- “दिल्ली” नाम बाद के दौर में पड़ा, जबकि “इंद्रप्रस्थ” हमारी जड़ों से जुड़ा है।
- इससे पर्यटन में भी बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि एक पौराणिक-ऐतिहासिक शहर की ब्रांडिंग अलग प्रभाव डालती है।
कुछ लोग इसे एक “सांस्कृतिक पुनर्जागरण” का प्रतीक भी मान रहे हैं।
विरोध भी कम नहीं है – इतिहासकारों का तर्क क्या है?
यह मुद्दा जितनी तेजी से समर्थन जुटा रहा है, उतनी ही तेजी से इसका विरोध भी सामने आया है।
इतिहासकार कहते हैं:
- दिल्ली सिर्फ “इंद्रप्रस्थ” नहीं है, बल्कि कई सदियों का मिश्रण है—मुगल, सुल्तानत, ब्रिटिश, और आधुनिक भारत की परतें शामिल हैं।
- नाम बदलकर दिल्ली की बहु-स्तरीय पहचान को सीमित कर दिया जाएगा।
- महाभारत-काल के “इंद्रप्रस्थ” का सटीक स्थान अभी भी बहस का विषय है।
- सिर्फ धार्मिक या पौराणिक संदर्भ के आधार पर राजधानी का नाम बदलना तर्कसंगत नहीं।
कई लोग यह भी कहते हैं कि नाम बदलने से मूल समस्या—ट्रैफिक, प्रदूषण, प्रदूषण और प्रशासन—कहीं नहीं जाने वाली।
क्या वाकई नाम बदलने की तैयारी चल रही है?
सच तो यह है कि सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
लेकिन सांसद द्वारा की गई मांग, और संगठनों का बढ़ता दबाव देखकर इतना जरूर साफ है कि यह मुद्दा आने वाले समय में राजनीतिक रूप से बहुत गर्म होने वाला है।
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राजनीति में जब किसी नाम को बदलने की चर्चा शुरू होती है, तो अक्सर वह सिर्फ प्रस्ताव बनकर नहीं रह जाता।
अयोध्या, इलाहाबाद, फैजाबाद से लेकर अल्लाहाबाद तक—हमने कई शहरों के नाम बदलते देखे हैं।
तो यह मानना गलत नहीं होगा कि आने वाले महीनों में यह विवाद और ज्यादा गहराएगा।
अगर दिल्ली का नाम बदल गया तो असर क्या पड़ेगा?
नाम बदलना सिर्फ शब्द बदलना नहीं होता। इसके साथ बड़ी चीजें भी प्रभावित होती हैं:
- स्टेशन, एयरपोर्ट, सरकारी बोर्ड
- टूरिज़्म ब्रांडिंग
- सरकारी दस्तावेज़
- अंतरराष्ट्रीय रेफरेंस
- दिल्ली की “पहचान”
कुछ लोगों का कहना है कि नाम बदलने से बदलाव सिर्फ भावनात्मक होगा, जबकि असली मुद्दे यथावत रहेंगे।
दूसरी ओर, समर्थक कहते हैं कि यह “पहचान” बदलने का नहीं, बल्कि “पहचान वापस लाने” का कदम है।
लोगों की राय क्या है?
सोशल मीडिया पर इसको लेकर दो धड़े साफ दिखाई देते हैं।
एक तरफ लोग कह रहे हैं—
“इंद्रप्रस्थ नाम सुनते ही गौरव की भावना आती है।”
दूसरी तरफ लोग कहते हैं—
“दिल्ली वही रहेगी, नाम बदलने से क्या फ़र्क पड़ेगा?”
और इसी टकराव में यह मामला अब राष्ट्रीय बहस बन चुका है।
निष्कर्ष — दिल्ली या इंद्रप्रस्थ?
अभी यह सिर्फ प्रस्ताव है, लेकिन जिस तरह से यह तेजी पकड़ रहा है, यह आने वाले दिनों में एक बड़ा राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दा बनने वाला है।
दिल्ली का नाम बदले या न बदले, लेकिन इतना साफ है कि इस बहस ने लोगों को अपने इतिहास और पहचान के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है।